आज फिर लड़ने का दिन था,
एक आख़िरी बार,
बस पार निकल जाऊँगी मैं,
इस शोर के उस पार।
कैसा शोर?
कैसी आवाजें?
चारों तरफ है क्या,
कुछ दीवार, कुछ दरवाजे।
शोर तो था, बहुत था।
हाँ जिक्र कभी किया नहीं,
तंग तो थी, बहुत थी,
हाँ बाताया कभी नहीं।
वो शोर जो आंखें बंद करने पर
चारों ओर से आता था,
शोर क्या था किसका था,
समझ कुछ नहीं आता था।
शायद लोग थे बहुत,
अलग अलग तबकों से,
बातें इंसानी थी,
अलग अलग तजुर्बे के।
चिल्ला रहे थे क्या वो सब?
क्या कहना क्या चाहते थे?
सुनने की कोशिश बहुत की,
वो प्यार से, धीरे से कुछ नहीं बताते थे?
तो किया क्या तुमने?
जवाब क्या दिया?
कोशिश तो बहुत की
की थोड़ा ध्यान से सुन लूं,
पर वो शोर इतना ज़्यादा था,
मन कहता था रो दूं।
हाथ जोड़े,
पैर पटके,
सच मानो मैंने सब किया,
की ये मन के शोर रुकें,
कोई मेरी सुने,
मैं समझा पाऊं कुछ,
अरे खुद को समझ पाऊं थोड़ा,
लेकिन शायद कोई जल्दी थी,
और सब मुझसे नाराज थे,
ना मेरी सुन पाया कोई,
ना उनका कुछ समझ सके।
फिर? क्या हुआ? चुप वो कैसे हुए?
और ये तो बताओ, वो शुरू कब हुए?
क्या पता, ठीक से अब याद नहीं,
लेकिन अब वो शोर कानों में बर्दाश्त नहीं।
ऐसा लगा अब दौर है कोई,
तेज़ भाग कहीं पार निकलना है,
ये पीछे ना आ पायें किसी ऐसे मोड़ पे रुकना है।
इन आवाजों की जिनकी शक्ल नहीं,
कोई सुर नहीं, कोई बात नहीं,
जिनका रुख थोड़ा बिगड़ा लगता है,
जिनका मन उचट लगता है,
इन्हें भरोसा मुझ पे तो था भी नहीं,
मेरा भी खत्म किया है,
मुझे छोड़ा ना अपना ही,
ये जाने कहाँ से आयें हैं,
इन्हें क्यूँ लगता ये मेरा ही,
मुझसे ज़्यादा जान पायें हैं।
फिर? क्या हुआ?
उस दिन जब आख़िरी लड़ाई थी?
चुप हुआ शोर?
आया कोई ऐसा मोड़?
नहीं।
मैं हार गई।
जो सिर्फ दीवारें थी,
वो खत्म ना हो,
जो रास्ते थे, उन पर कोई मोड़ नहीं,
शायद कोई मीनार थी,
बाहर उसके दुनिया,
जिस रास्ते से मैं आयी,
वो ही लुप्त थी।
खो तो गई ही थी।
अब हिम्मत भी हार गई।
शोर इतना तेज़ था,
सारी दुनिया ही घूम गई।
हार गई? फिर कैसे शोर बंद हुआ?
खो गई? तो कैसे तुम बाहर आयी?
किसी ने पुकारा।
जोर से,
मगर प्यार से।
तेज़ से,
पर दुलार से।
और जैसे ही वो आवाज़ आयी।
जाने कैसे मन शांत हुआ,
ध्यान दिया तो एहसास हुआ,
वो शोर इतने दिन बाद बंद हुआ।
किसकी आवाज़ थी वो?
कहां से आयी?
कौन था इस अंधेरे में?
जिसकी आवाज़ रोशनी बन आयी?
मैं।
मैं ही थी।
इसी मन के शोर थे,
उसी मन की आवाज़ आयी।
खुद से लड़ाई थी,
खुद से जीत आयी।