ममता सी कोमल, ज्वाला सी तेज़ – औरत

थकान के आगे, चट्टान के पार,
एक दुनिया है, जहाँ औरत रहती है।
तुम लाख करो परेशान उसे,
वो बलशाली है, इसलिए सहती है।
उसकी आँखों की चमक जो है,
उसके आगे सूरज भी फीका है।
उसके तन में जो शक्ति है,
उससे डर के कौन नही भागा है।

वो चले जहाँ, है सृजन वहाँ,
उसके बिना क्या तुम कर लोगे।
वो भिड़े जहाँ, तेरा नाश वहाँ,
जाओ देखो तुम कितना लड़ लोगे।
औरत, सुन, तू आज है,
धरती है, अंबर पाताल है।
हाँ प्यार की मूरत होगी तू,
पर तू दुर्गा का अवतार है।
ना चुप मत रह, आवाज़ तो दे,
देख तेरा दंभन फिर कौन करे।
तू हंस के देख, मुस्कुरा तो दे,
तेरी हंसी से भी पाखंड डरे।
तू सोच सबका, खुद को भी संवार,
स्वाभिमान तेरा न चोट खाये हर बार।
अब कहना क्या है, इस दुनिया को,
ममता सी कोमल, ज्वाला सा तेज़, औरत है वो।

2 Replies to “ममता सी कोमल, ज्वाला सी तेज़ – औरत”

  1. Wow! Beautifully written…proud to see the woman which you are today and how amazing your thoughts are.

  2. I felt so touched, emotional and strong while reading this. I really had tears in my eyes Tanya. You have beautifully described a woman…proud of you. Happy woman’s day ❤

Leave a Reply to Mukesh Cancel reply

Your email address will not be published.