गुण अनोखा

खूबियां बहुत दी उपर वाले ने सबको,
पर एक खूबी बस कुछ इंसानों को ही दी,
पाना सिखाया सबको,
इंतजार का हुनर गिने चुनो को ही दी।
अब तुम मुझसे पूछो अरे ऐसा क्या है,
दो पल रुकना, इसमें इतना बड़ा क्या है,
पर दो पल की बात करता है कौन,
इंतजार तो है जीवन भर का मौन।
तपती धूप में कुछ बूंदों का इंतजार,
जैसे ये धरती करती है,
वैसे ही चिलचिलाती जिंदगी,
उम्मीद का इंतजार करती है।
ठंड में उस सुहानी किरण का इंतजार
जैसे ये फूल करते हैं,
ठीक वैसे ही घर के आँगन से बिछड़े
कलियां मेहसूस करते हैं।
खोया कोई प्रेमी जैसे, उसके एक झलक का इंतजार,
मानो सागर का रस्ता भूल गई हो कोई नदिया पर्वत पार।
लौट आए शाम को लाल उसका,
उस मासूम माँ का इंतजार,
जैसे चंदा करता है दिन भर,
अपने तारों को याद।
समय से समय चुरा कर करना होता है इंतजार,
निराशा दिखे भी अगर, ये मन मानता नहीं हार।
पग पग चल कर, काटें हटा कर, उस मंजिल, उस कामयाबी का इंतजार,
और फिर कोई जो बात ना बने,
शुरू से शुरू करने को तैयार।
गुण इंतजार का, जो राधा में कृष्न के लिए था,
अर्जुन में ज्ञान के लिए था, राम में वन वास के लिए था,
ये गुण नहीं आम पर खास।
जो रखे हिम्मत लंबे वक़्त से लड़ने का,
किस्मत बदलते देखने का,
जो जाने कीमत इंतजार का,
की बस मेहनत से नहीं, सही समय आने से बात बनती है,
तभी सुबह का निकला, शाम को लौटे तो सुकून सुहानी मिलती है।

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